विद्युत कण संचलन

विद्युत कण संचलन

6.विद्युत कण संचलन – यदि कोलाइडी विलयन को U आकार की नली में भरकर नली के दोनों सिरों पर विपरीत आवेशित दो इलेक्ट्रोड लगा दिए जाएं तथा विद्युत धारा प्रवाहित की जाए तो सभी कोलाइडी कण विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की तरफ गति करते हैं कणों कि इस गति को विद्युत कण संचलन कहा जाता है।

विद्युत कण संचलन

7.स्कंदन – द्रव विरोधी या द्रव विरागी कोलाइड का स्कंदन तथा द्रवरागी या द्रव स्नेही कोलाइड का स्कंदन करने के लिए यदि किसी तरह कोलाइडी कणों पर उपस्थित आवेश को समाप्त कर दिया जाए तो यह आपस में स्कन्दित होकर चिपक जाते हैं इसे कोलाइडी विलयन का स्कंदन कहते हैं जिसकी निम्न विधियां है ।

A.विद्युत अपघट्य मिलाकर  – यदि कोलाइडी विलयन में अधिक मात्रा में विद्युत अपघट्य मिला दिया जाए तो कोलाइडी कणों के विपरीत आवेशित कणों के द्वारा उदासीन हो जाते हैं और इनका स्कंदन हो जाता है।

B.विपरीत आवेशित सॉल मिलाकर  – यदि दो विपरीत आवेशित सॉल की समान मात्रा आपस में मिला दी जाए तो दोनों सॉल के कण एक दूसरे के आवेश को समाप्त कर देते हैं और इस स्कन्दित हो जाते हैं।

C.विद्युत कण संचलन द्वारा  – यदि कोलाइडी विलयन में इलेक्ट्रोड लगाकर धारा प्रवाहित की जाए तो कोलाइडी कण विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड पर जाकर अपना आवेश समाप्त कर देते हैं और स्कन्दित हो जाते हैं।

 D.क्वथन द्वारा – यदि कोलाइडी विलयन को उच्च तापमान पर गर्म किया जाए तो परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण मध्यम के कण तेजी से टकराते हैं जिससे कणों पर आवेशित परत विकृत हो जाती है और कोलाइडी प्रावस्था समाप्त हो जाती है।

हार्डी शुल्जे का नियम

“स्कंदक आयनों की स्कंदन क्षमता उन पर उपस्थित आवेश के समानुपाती होती है”

विद्युत अपघट्य मिलाकर कोलाइडी विलयन को स्कन्दित करते समय स्कंदन करने वाले विपरीत आवेशित आयनों को स्कंदक कहते हैं स्कंदक आयनों पर जितना आवेश ज्यादा होगा स्कंदन की दर भी उतनी ही ज्यादा होगी।

रक्षी कोलाइड

द्रवस्नेही कोलाइडो में द्रवविरागी कोलाइडो को रक्षित करने का गुण होता है यदि द्रवविरागी कोलाइड को द्रवस्नेही कोलाइड में डाल दिया जाए तो द्रवस्नेही कोलाइड के कण द्रवविरागी कोलाइड के कणों के चारों ओर एकत्रित हो जाते हैं और लंबे समय तक उनकी कोलॉइडी प्रावस्था को सुरक्षित रखते हैं।

इमल्शन पायस द्रवद्रव कोलाइड

इमल्शन

यह एक प्रकार का कोलाइडी विलयन है जिसमें एक द्रव पदार्थ की बूंदे दूसरे द्रव पदार्थ में परिक्षेपित रहती है इमल्शन उन द्रवों का बना होता है जो एक दूसरे में अविलेय अथवा आंशिक विलेय होते हैं दोनों द्रवों में सामान्यतः एक द्रव  पानी होता है तथा एक तेल होता है अतः इमल्शन दो प्रकार के होते हैं।

तेल का पानी में इमल्शन (O/W)

तेल = परिक्षिप्त प्रावस्था                         जल = परिक्षेपण माध्यम                               उदाहरण- दूध

पानी का तेल में इमल्शन (W/O)

जल = परिक्षिप्त प्रावस्था                        तेल = परिक्षेपण माध्यम                               उदाहरण- मख्खन ,क्रीम

इमल्शन अथवा पायस को अधिक समय तक स्थिर रख देने पर यह दो परतों में अलग हो जाते हैं अर्थात इमल्शन प्रावस्था समाप्त हो जाती है इसलिए इमल्शन को स्थायित्व प्रदान करने के लिए कुछ अलग से पदार्थ मिलाए जाते हैं जिनको पायसीकर्मक कहते हैं।

तेल का पानी (O/W)में इमल्शन के लिए पायसीकर्मक – प्रोटीन ,गोंद ,प्राकृतिक एवं संश्लेषित साबुन

पानी का तेल (W/O) में इमल्शन के लिए पायसीकर्मक – वसीय अम्लों के भारी धातु लवण ,लंबी श्रंखला के एल्कोहॉल ,काजल

हमारे चारों ओर के कोलाइड

  1. आकाश का नीला रंग – वायुमंडल में उपस्थित धूल के कणों के चारों ओर जलवाष्प एकत्रित हो जाती है जो वायु के साथ कोलाइडी विलयन बनाते हैं इस प्रकार इस कोलाइडी विलयन के कण सूर्य के प्रकाश का प्रकीर्णन कर देते हैं जिससे आकाश नीला दिखाई देता है।
  1. कोहरा ,धुंध, बादल और बरसात – जब वायुमंडल की वायु में आद्रता की मात्रा बढ़ती है तो यह आद्रता या नमी धूल के कणों के चारों ओर एकत्रित होकर छोटे-छोटे बिंदुक बनाती है  जो वायु में कोहरे अथवा धुंध के रूप में दिखाई देते हैं जब ये बिंदुक पृथ्वी तल से निश्चित ऊंचाई पर अधिक सांद्रता में होते हैं तो वायु के साथ इनके कोलाइड को एरोसॉल कहते हैं जो बादलों के रूप में दिखाई देते हैं जब वायुमंडल में नमी एक निश्चित मात्रा से ज्यादा बढ़ जाती है तो छोटे-छोटे बिंदुक मिलकर बड़े बिंदुक बनाते हैं जो बारिश के रूप में गिरने लगते हैं । कभी-कभी दो विपरीत आवेशित बादलों के टकराने से भी बारिश होती है इस प्रक्रिया में बिजली भी चमकती है क्योंकि विपरीत आवेशित बादलों के टकराने से कोलाइड प्रावस्था समाप्त हो जाती है विद्युत आवेशित धूल को बादलों पर स्प्रे करके भी कृत्रिम बारिश करवाई जाती है।
  1. रुधिर – रुधिर एल्बुमिनॉइड पदार्थों का कोलाइडी विलयन है अतः रक्तस्राव को रोकने के लिए फिटकरी लगाई जाती है क्योंकि ऐसा करने से रुधिर का स्कंदन जल्दी हो जाता है खाद्य सामग्री जैसे हलवा, आइसक्रीम, पनीर, पूरी, आदि खाद्य सामग्रियों कोलाइडी विलयन होते हैं।
  1. मृदा – मृदा एक कोलाइडी विलयन (उपजाऊ मिट्टी) है जिसमें ह्यूमस रक्षी कोलाइड की तरह काम करता है इसकी वजह से जल और खनिज लवणों का अवशोषण होता है।
  1. डेल्टा बनना – नदी के पानी में मिट्टी के बारिक कण पानी से मिलकर कोलाइडी विलयन बनाते हैं जब ये नदी का कोलाइडी विलयन बहता हुआ समुद्र में गिरता है तो समुद्र में उपस्थिति विद्युत अपघट्यों के कारण इनका स्कंदन हो जाता है और कोलाइडी प्रावस्था समाप्त हो जाती है और सारी मिट्टी समुद्र के तल पर इकट्ठी हो जाती है जिसे डेल्टा निर्माण कहते हैं।

कोलाइडो के अनुप्रयोग

  1. धुँए का विद्युतीय अवक्षेपण

धुँए में उपस्थित कार्बन के कण ऋणात्मक आवेशित कोलाइडी कण होते हैं कारखानों से निकलने वाले धुएं को अवक्षेपक कक्ष में से गुजारते हैं कक्ष कॉन्ट्रेल नामक अवक्षेपक लगा होता है जो एनोड का कार्य करता है जब इसमें धारा प्रवाहित करते हैं तो कार्बन के ऋणात्मक आवेशित कोलाइडी कण एनोड पर जाकर उदासीन होकर नीचे जमा होते जाते हैं तथा कार्बन रहित धुँए को बाहर निष्कासित कर दिया जाता है।

  1. औषधीय क्षेत्र में अनेक औषधीय कोलाइडी विलयन के रूप में होती है ।                                                                                               A. आंख के रोगों में काम आने वाली औषधि और ओर्जीरॉल सिल्वर सॉल है ।                                                                                                 B. कोलाइड एंटीमनी का उपयोग कालाजार नामक रोग में काम आती है ।                                                                                                   C. अन्तः पेशी इंजेक्शन में कोलाइड गोल्ड का उपयोग करते हैं ।D. दूधिया मैग्नीशिया एक इमल्शन है जो पेट संबंधित बीमारियों को दूर करने में काम आता है ।
  2. पेयजल कोलाइड अशुद्धियों (बड़े आकर की)को स्कन्दित करने के लिए इसमें फिटकरी मिलाई जाती है।
  3. चर्म शोधन में
  4. फोटोग्राफी प्लेट बनाने में
  5. रबर उद्योग में
  6. औद्योगिक उत्पाद बनाने में

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