अधिशोषण कारण व क्रियाविधि

अधिशोषण कारण व क्रियाविधि

पृष्ठीय  रसायन – रसायन विज्ञान की वह शाखा जिसमें पृष्ठ एवं अंतरा पृष्ठ पर होने वाली प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

अंतरा पृष्ठ – दो भौतिक अवस्थाओं को एक दूसरे से पृथक करने वाले इनके बीच के पृष्ठ को अंतरा पृष्ठ कहा जाता है।

अंतरा पृष्ठ पर होने वाली प्रक्रिया जैसे – संक्षारण, इलेक्ट्रोड प्रक्रम, क्रिस्टलीकरण, विलीनीकरण (अंतरा पृष्ठ को दर्शाने के लिए हाइफन(-) अथवा श्लेष (/) का उपयोग किया जाता है।)

अधिशोषण – किसी ठोस या द्रव्य पदार्थ की सतह पर सांद्रता का आंतरिक भाग की तुलना में बढ़ जाना अधिशोषण कहलाता है ।

अधिशोषण कारण व क्रियाविधि

किसी भौतिक अवस्था ठोस, द्रव आदि में इस अवस्था के स्थूल (बीच के कण) चारों तरफ से एक दूसरे कणों द्वारा आकर्षित रहते हैं इस प्रकार संतुलन की अवस्था में रहते हैं लेकिन पृष्ठ के कण अंदर की तरफ तो दूसरे कणों से आकर्षित रहते हैं लेकिन बाहर की तरफ नहीं इसलिए यह असंतुलित अवस्था में रहते हैं व इन्हीं आकर्षण बलों या मुक्त संयोजकताओं के कारण ही अधिशोषण की घटना होती है।

अधिशोषक पदार्थ – वह पदार्थ जिस की सतह पर सांद्रता में परिवर्तन होता है।

अधिशोष्य पदार्थ – वह पदार्थ जिसके कारण अधिशोषक की सतह पर सांद्रता में परिवर्तन होता है।

उदाहरण – चारकोल पर ऑक्सीजन  का अधिशोषण चारकोल = अधिशोषक                        ऑक्सीजन = अधिशोष्य

विशोषण – अधिशोषक पदार्थ की सतह से अधिशोष्य पदार्थ के निकलने की क्रिया को विशोषण कहा जाता है ।

ऊष्मागतिकी के आधार पर अधिशोषण की व्याख्या

अधिशोषण की क्रिया में आकर्षण बलों में हमेशा कमी आती है अर्थात एंथैल्पी कम हो जाती है क्योंकि यह क्रिया हमेशा ही ऊष्माक्षेपी होती है इसलिए एंथैल्पी परिवर्तन ΔH (-ve) प्राप्त होता है ।                                                        ΔH = (-ve)

अधिशोषण की प्रक्रिया में तंत्र पहले की बजाय ज्यादा व्यवस्थित हो जाता है ।       ΔS = -ve   ΔS = एंट्रोपी

गिब्ज़ ऊर्जा समीकरण से               ΔG =  ΔH – TΔS    (ΔH  (-ve)  व ΔS = -ve)

ΔG =  (-ΔH) + T(-ΔS)   

उपरोक्त में ΔH  व ΔS दोनों ही ऋणात्मक है अतः TΔS वाला पद भी धनात्मक हो जाता है अतः अधिशोषण की प्रक्रिया अपने आप होने के लिए ΔH >TΔS होना ऊष्मागतिकी आवश्यकता होगी क्योंकि इस स्थिति में ΔG ऋणात्मक होगा । (ΔG = -ve  स्वतः प्रक्रम के लिए)  जैसे-जैसे अधिशोषण होता है वैसे वैसे ΔG का मान कम ऋणात्मक होता जाता है एक समय ऐसा आता है जब ΔG शून्य हो जाता है इस समय साम्य स्थापित हो जाता है और इसके पश्चात अधिशोषण की क्रिया नहीं होती है ।

साम्य पर अधिशोषण की दर = विशोषण की दर

  1. कोई भी पदार्थ चूर्णित अवस्था में ज्यादा अच्छा अधिशोषक साबित होता है क्यों ?

Ans. पदार्थ को चूर्णित अवस्था में बदलने पर इसका पृष्ठीय क्षेत्रफल बहुत अधिक बढ़ जाता है और अधिशोषण पृष्ठीय क्षेत्रफल पर ही आधारित है अतः इसके बढ़ने से अधिशोषण भी बढ़ जाता है। अधिशोषण पृष्ठीय क्षेत्रफल के समानुपाती होता है।

अधिशोषण के उदाहरण

  1. एक पात्र में H2 , O2 , Cl2 , N2 , SO2 आदि गैसों को यदि चारकोल के साथ रखने पर पात्र में इन गैसों का दाब कम हो जाता है अर्थात चारकोल के द्वारा इन गैसों का अधिशोषण कर लिया जाता है।
  2. नमी युक्त कमरे में यदि सिलिका जेल व एलुमिना जेल को रख दिया जाए तो कुछ समय पश्चात उस कमरे का वातावरण शुष्क हो जाता है क्योंकि इनके द्वारा जल वाष्प का अधिशोषण कर लिया जाता है।
  3. परिष्कृत शर्करा के जलीय विलयन को जंतु चारकोल के ऊपर से प्रवाहित करने पर विलयन रंगहीन व स्वच्छ हो जाता है क्योंकि रंजक के कण जंतु चारकोल द्वारा अधिशोषित कर लिए जाते हैं।

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