विलयनों का चालकत्व चालकता
विद्युत अपघटनी विलयनों का चालकत्व एवं चालकता
(A) विशिष्ट प्रतिरोध/प्रतिरोधकता (ρ) – एक धात्विक तार का प्रतिरोध इसकी लम्बाई के समानुपाती तथा इसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
(B) चालकत्व (G) :- प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालकत्व कहा जाता है।
(C) चालकता (κ) – प्रतिरोधकता के व्युत्क्रम को चालकता कहा जाता है।
विद्युत अपघट्य का प्रतिरोध
विद्युत अपघट्यों का चालकत्व (आयनिक चालकता)
शुद्ध जल में भी बहुत कम मात्रा H+ में एवं OH– आयन होते हैं शुद्ध जल में उनकी सांद्रता 10-7 M होती है जब इसमें किसी विद्युत अपघट्य को मिलाते हैं तो अपघट्य के आयनिक होने की वजह से आयनो की संख्या बढ़ती है जिससे चालकता भी बढ़ जाती है। विद्युत अपघट्य के जलीय विलयन में चालकता इसमें उपस्थित आयनो की वजह से होती है इसे आयनिक चालकता कहते हैं इसका मान निम्न कारकों पर निर्भर करता है।
- अंतर आयनिक आकर्षण – विलेय के मध्य जितना अधिक आकर्षण बल होगा उतनी चालकता कम होगी।
- विलायक की ध्रुवता – विलायक जितना ज्यादा ध्रुवीय होगा आयनन उतना ही अधिक व चालकता अधिक होगी।
- ताप – ताप बढ़ाने से चालकता बढ़ती है आयनो की गतिज ऊर्जा बढ़ती है सभी आकर्षण बल कमजोर हो जाते हैं।
- तनुता – तनुता बढ़ने से आयनन की मात्रा बढ़ती है व अधिक आयन उत्पन्न व चालकता बढ़ जाती है।
- श्यानता – माध्यम की श्यानता बढ़ाने से चालकता घटती है।
नोट – तनु करने पर विशिष्ट चालकता कम व तुल्यांकी चालकता बढ़ती है।
आयनिक चालकता का मापन
जिस विलयन का चालकत्व ज्ञात करना होता है उसका व्हीटस्टोन सेतु की सहायता से प्रतिरोध ज्ञात कर लेते हैं तथा प्रतिरोध का व्युत्क्रम करने पर चालकत्व प्राप्त हो जाता है जिस विलयन का चालकत्व ज्ञात करना होता है उसे चालकता सेल में लेते हैं। चालकता सेल में प्लैटिनम के दो इलेक्ट्रोड लेते हैं । चालकता सेल को एक ताप स्थाई में रखते हैं व्हीटस्टोन सेतु की एक भुजा को खोलकर चालकता सेल के इलेक्ट्रोड से जोड़ देते हैं इसके बाद व्हीटस्टोन सेतु को प्रत्यावर्ती धारा जनित्र (AC) से जोड़ देते हैं। जब प्रत्यावर्ती धारा जनित्र 1000 से 3000 चक्कर/सेकंड आवर्ती की विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है। इसके बाद प्रतिरोधों को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि शून्य विक्षेप की स्थिति में या संतुलन में आ जाए इसके बाद निम्न सूत्र द्वारा प्रतिरोध ज्ञात कर लेते हैं।
[संतुलन की अवस्था में तार AB में कोई धारा नहीं बहती है]