विलेयता (ठोस की द्रव में विलेयता,गैस की द्रव विलेयता) ,हेनरी का नियम
विलेयता
किसी विलायक में विलेय घोलकर विलयन बनाया जाता है जब निश्चित ताप और दाब पर विलायक की निश्चित मात्रा में विलेय की अधिकतम मात्रा घोल दी जाए तो संतृप्त विलयन प्राप्त होता है ,इस विलयन की सांद्रता को ही विलेयता कहा जाता है।
ठोस की द्रव में विलेयता
जब किसी ठोस पदार्थ को द्रव में घोला जाता है तो निम्न दो प्रक्रियाएं होती हैं।
विलीनीकरण : – इस प्रक्रिया में ठोस पदार्थ द्रव में विलेय होता है।
क्रिस्टलीकरण :- इस प्रक्रिया में द्रव में घुले हुए ठोस के कारण शेष बचे हुए अविलेय ठोस के साथ चिपककर क्रिस्टलीकरण की क्रिया को दर्शाते हैं । उपरोक्त दोनों प्रक्रियाएं साथ साथ चलती हैं एक समय ऐसा आता है जब विलीनीकरण की दर क्रिस्टलीकरण की दर दोनों बराबर हो जाती है इस समय गतिक साम्य स्थापित हो जाने पर दिए गए ताप और दाब पर ठोस (विलेय की) अधिकतम मात्रा द्रव (विलायक) में घुली होती है।
ठोस की द्रव में विलेयता के आधार पर विलयन निम्न प्रकार के होते हैं ।
A.संतृप्त विलयन – दिए गए निश्चित ताप और दाब पर विलायक में विलेय की मात्रा अधिकतम खोलने पर प्राप्त विलयन संतृप्त विलयन कहलाता है।
B.असंतृप्त विलयन – निश्चित ताप और दाब पर विलायक की निश्चित मात्रा में विलेय की घुल सकने वाली मात्रा से कम मात्रा घुली हो तो ऐसा विलयन असंतृप्त विलयन कहलाता है।
ठोस की द्रव में विलेयता प्रभावित करने वाले कारक
(1) विलेय विलायक की प्रकृति – सोडियम क्लोराइड और चीनी पानी में घुल जाते हैं, जबकि नेफ्थलीन और एन्थ्रासिन पानी में नहीं घुलते हैं । सोडियम क्लोराइड और चीनी बेंजीन में नहीं घुलते हैं,जबकि नेफ्थलीन और एन्थ्रासिन बेंजीन में घुल जाते हैं सामान्यतया यह देखा जाता है कि ध्रुवीय विलेय पदार्थ ध्रुवीय विलायकों में ही घुलते हैं और अध्रुवीय विलेय पदार्थ अध्रुवीय विलायकों में ही घुलते हैं।
“समान – समान को घोलता है”
(2) ताप का प्रभाव – ठोस को द्रव में घोलने की प्रक्रिया में गतिक साम्य स्थापित होता है अतः लॉ शातेलिए के नियमानुसार यदि ठोस को द्रव में घोलने की प्रक्रिया ऊष्माशोषी (ΔH > 0 OR ΔH = +ve) है तो ताप बढ़ाने पर विलेयता बढ़ेगी और यदि प्रक्रिया ऊष्माक्षेपी (ΔH < 0 OR ΔH = -ve ) हो तो विलेयता घटेगी।
(3) दाब का प्रभाव – ठोस की द्रव में विलेयता पर दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि ठोस और द्रव्य दोनों ही असंपीड्य होते हैं।
गैस की द्रव विलेयता
गैस भी द्रव में घुलती है इसी वजह से जलीय जीव जंतु जीवित रहते हैं क्योंकि जल में ऑक्सीजन घुली रहती है माना एक बंद पात्र में द्रव को गैस के साथ भरा जाता है जब गैस द्रव में घुलती है तब भी विलीनीकरण (संघनन) और वाष्पीकरण की प्रक्रियाएं साथ साथ चलती है एक समय ऐसा आता है जब दोनों प्रक्रियाओं की दर बराबर हो जाती है और गतिक साम्य स्थापित हो जाता है इस समय दिए गए ताप और दाब पर गैस की अधिकतम मात्रा द्रव में घुली होती है।
गैस की द्रव में विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक
दाब बढ़ाने पर द्रव में विलेय इकाई आयतन में गैस के कणों की संख्या बढ़ जाती है अतः गैस के कणों की द्रव की सतह से टकराने की दर बढ़ जाती है और इसलिए विलेयता बढ़ती है। गैस की द्रव में विलेयता के लिए वैज्ञानिक हेनरी ने एक नियम दिया।
हेनरी का नियम :- इस नियमानुसार “किसी द्रव की सतह पर उपस्थित गैस का आंशिक दाब द्रव में घुले हुए गैस के मोल अंश के समानुपाती होता है”।
हेनरी नियतांक (KH) का मान गैस की प्रकृति पर निर्भर करता है अर्थात अलग-अलग गैसों के लिए हेनरी नियतांक के मान अलग-अलग होते हैं।
KH का मान | ताप केल्विन में | गैस |
0.611 | 298 | CH2=CH-Cl |
0.413 | 298 | CH4 |
1.83×10–5 | 298 | HCHO |
1.67 | 298 | CO2 |
40.3 | 298 | Ar |
34.86 | 293 | O2 |
76.48 | 293 | N2 |
69.16 | 293 | H2 |
144.97 | 293 | He |
हेनरी के नियम के अनुप्रयोग
1.दाब का प्रभाव
- शीतल पेय पदार्थों उदाहरण सोडावाटर आदि में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की विलेयता को बढ़ाने के लिए बोतलों को अधिक दाब पर बंद करते हैं।
- समुद्री गोताखोर जब समुद्र में गहराई में जाते हैं तो वायुदाब अधिक होने के कारण उनके रक्त में अधिक मात्रा में गैसें घुल जाती है जब वो गहराई से सतह की ओर आते हैं तो वायुदाब कम होता है और रक्त में घुली हुई गैसें तेजी से बाहर निकलती है । इस समय मुख्यतः नाइट्रोजन गैस के बुलबुले बनते हैं जो रक्त वाहिनीयों को अवरुद्ध कर सकते हैं ऐसी चिकित्सकीय स्थिति को बैंड्स कहते हैं इससे बेहोशी या मृत्यु हो सकती है इससे बचने के लिए समुद्री गोताखोर अपने वायु के सिलेंडरों में हिलियम गैस मिलाकर तनु की हुई वायु को साथ ले जाते हैं।
- पर्वतारोही जब पहाड़ पर ऊंचाई पर चढ़ते हैं तो धीरे-धीरे वायुदाब कम होता जाता है जिससे इनके रक्त में घुलने वाली ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है इस कारण कोशिकाओं को कम ऑक्सीजन मिलती है और ये थक जाते हैं और ये ठीक से सोच नहीं पाते हैं इस प्रकार के लक्षणों को एनोक्सिया कहा जाता है।
2.ताप का प्रभाव – गैस की द्रव में विलेयता को संघनन के समरूप माना जाता है जो कि हमेशा ऊष्माक्षेपी प्रक्रिया होती है अतः ताप बढ़ाने पर गैस की द्रव में विलेयता हमेशा कम होती है।
3.गैस की प्रकृति का प्रभाव – विशेष प्रकार के द्रव में अलग-अलग गैसों के घुलने की अलग अलग प्रवृत्ति होती है । उदाहरण HCl गैस पानी में अत्यधिक विलेय होती है ऑक्सीजन गैस पानी में अपेक्षाकृत कम विलेय होती है।
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