ठोसो में अपूर्णता/दोष ,स्टाईकियोमीट्रिक दोष ,नॉन स्टाईकियोमीट्रिक दोष

ठोसो में अपूर्णता/दोष ,स्टाईकियोमीट्रिक दोष ,नॉन स्टाईकियोमीट्रिक दोष

ठोसो में अपूर्णता/दोष

आदर्श क्रिस्टल –वह क्रिस्टल जिसमें अवयवी कण पूर्णतः की व्यवस्था अवयवी कण पूर्णतः नियमित होती है तथा सभी जालक बिंदुओं पर अवयवी कण स्थित होते हैं l

वास्तविक क्रिस्टल – वह क्रिस्टल जिसमें क्रिस्टल कण अपने जालक बिंदु से हट जाता है वास्तविक क्रिस्टल कहलाता है क्रिस्टल में कणों के आदर्श व्यवस्था से विचलन ,दोष अथवा अपूर्णता उत्पन्न हो जाती है l

अपूर्णता निम्न कारणों से उत्पन्न होती है l

1.ताप – 0k( केल्विन) ताप पर क्रिस्टलो की ऊर्जा न्यूनतम होती है तथा सभी अवयवी कण अपने जालक बिंदुओं पर स्थित होते हैं  0k (केल्विन) से अधिक ताप पर अवयवी कण इधर-उधर कंपन करने लगते हैं l जिससे अवयवी कण अपना जालक बिंदु छोड़ देते हैं व नियमित व्यवस्था में विचलन आरंभ हो जाता है l

2.अशुद्धियों की उपस्थिति – कभी-कभी अशुद्धियों की उपस्थिति के कारण क्रिस्टलो में अवयवी कणों की नियमित व्यवस्था अव्यवस्थित हो जाती है जिससे अपूर्णता या दोष उत्पन्न हो जाते हैं l

ठोसो में अपूर्णता/दोष या त्रुटियां दो प्रकार की होती है

1.रेखीय दोष (Linear defects) – यदि क्रिस्टल में अवयवी कणों की आदर्श व्यवस्था की एक पूरी पंक्ति में दोष होता है तो रेखीय दोष कहलाता है l

2.बिंदु दोष (Point defects) – यदि क्रिस्टलीय ठोस में उपस्थित एक अवयवी कण के चारों और की आदर्श व्यवस्था में अनियमितता होती है तो इसे बिंदु दोष कहते हैं l

बिंदु दोषों के प्रकार

1.स्टाईकियोमीट्रिक दोष          2. नॉन स्टाईकियोमीट्रिक दोष           3.अशुद्धता दोष

स्टाईकियोमीट्रिक दोष

इस प्रकार के दोष में क्रिस्टल जालक की ज्यामिति परिवर्तित नहीं होती है इन्हें आन्तर दोष या ऊष्मागतिक दोष भी कहते हैं l ये दो प्रकार के होते है l

(A) रिक्तिका दोष – इस प्रकार के दोष क्रिस्टलीकरण होते समय कुछ जालक बिंदु रिक्त रह जाते हैं इस दोष में पदार्थ का घनत्व कम हो जाता है l

(B) अंतराकाशी दोष – इस प्रकार के दोष में क्रिस्टलीकरण होते समय कणों के बीच अंतराकाशी स्थलों पर अतिरिक्त कण आ जाते हैं इससे क्रिस्टल जालक का घनत्व बढ़ जाता है l

NOTE — उपरोक्त दोनों प्रकार के दोष सहसंयोजी ठोसों में पाए जाते हैं

आयनिक ठोसों में निम्न प्रकार की दो स्टाईकियोमीट्रिक त्रुटि पाई जाती है l

(C) फ्रेंकल दोष – ऐसे आयनिक ठोस जिनमें उपस्थित धनायन व ऋण आयन के आकार में अधिक अंतर होता है उनमें कुछ धनायन (आकार छोटा होने के कारण) अपने मूल स्थान से विस्थापित होकर अंतराकाशी स्थलों में आ जाते हैं l इस कारण रितिका दोष व अंतराकाशी दोष दोनों एक साथ उत्पन्न होते हैं ऐसे दोष को फ्रेंकल दोष कहते हैं l

NOTE– इस दोष में घनत्व परिवर्तित नहीं होता है l

उदाहरण  — ZnS , AgI, AgCl, {Zn+2,Ag+ आकर छोटा}

(D) शॉटकी दोष – ऐसे आयनिक ठोस जिनमें धनायन व ऋण आयन के आकार में बहुत कम अंतर होता है उनमें क्रिस्टलीकरण होते समय समान संख्या में धनायन और ऋण आयन कुछ जालक स्थलों से लुप्त हो जाते हैं जितने धनायन लुप्त होते हैं उतने ही ऋण आयन लुप्त होते हैं, क्योंकि इसमें जालक की विद्युत उदासीनता बनी रहती है ऐसे दोष को शॉटकी दोष कहते हैं l

NOTE- इस दोष में ठोस का घनत्व कम हो जाता है l

उदाहरण — NaCl, KCl, CsCl

NOTE –  सिल्वर ब्रोमाइड में फ्रेंकल व शॉटकी दोनों त्रुटियां पाई जाती है l

नॉन स्टाईकियोमीट्रिक दोष

क्रिस्टलीय ठोसो में पाए जाने वाले ऐसे दोष जिनकी वजह से क्रिस्टल जालक की ज्यामिति बदल जाती है ,नॉन स्टाईकियोमीट्रिक दोष कहलाते है l यह निम्न दो प्रकार के होते हैं l

1.धातु आधिक्य दोष – क्रिस्टल जालक में धातु आयनों की अधिकता की वजह से धातु आधिक्य दोष उत्पन्न होते हैं l

(A) ऋण आयनिक रिक्तिका के कारण धातु आधिक्य दोष – सोडियम क्लोराइड के क्रिस्टल को सोडियम वाष्प के वातावरण में गर्म किया जाए तो कुछ सोडियम परमाणु क्रिस्टल जालक की सतह पर चिपक जाते हैं l इनके साथ सोडियम क्लोराइड बनाने के लिए कुछ क्लोराइड आयन सतह पर विसरित होते हैं  तथा ऋणायन के स्थान पर रिक्तिका बन जाती है अब सतह पर चिपके हुए अतिरिक्त सोडियम परमाणु इलेक्ट्रॉनिक त्याग कर सोडियम धनायन बनाते हैं त्यागते हुए ये इलेक्ट्रॉन ऋण आयनिक रिक्तिका के स्थान पर चले जाते हैं इस स्थान को रंग केंद्र या F- केंद्र कहा जाता है l (जर्मन शब्द फॉरबेनजेंटर रंग केंद्र के लिए ) इनकी वजह से सोडियम क्लोराइड का क्रिस्टल पीला हो जाता है l इसी कारण क्षार धातुओं के क्रिस्टल रंगीन होते हैं l

LiCl– गुलाबी,     NaCl– पीला,        KCl — बैंगनी,      RbCl– लाल,          CsCl– नीला     

(B) अंतराकाशी अवकाशों में अतिरिक्त धनायनों के कारण धातु आधिक्य दोष – जिंक ऑक्साइड शुद्ध अवस्था में (कमरे के ताप पर) सफेद होता है यदि इसे गर्म किया जाए तो क्रिस्टल की सतह से कुछ ऑक्सीजन वाष्पीकृत हो जाती है या निकल जाती है इसके कारण धातु धनायनों की अधिकता हो जाती है l                                            ZnO → Zn+2  +  O2 +2e

यह अतिरिक्त धनायन अंतराकाशी अवकाशों में आ जाते हैं तथा इलेक्ट्रॉन निकटवर्ती अंतराकाशी अवकाशों में आ जाते हैं इस वजह से जिंक ऑक्साइड के क्रिस्टल में पीला रंग आ जाता है l

2.धातु न्यूनता दोष – कुछ आयनिक क्रिस्टल स्टाईकियोमीट्रिक अनुपात में बनते ही नहीं है l

उदाहरण –  फेरस ऑक्साइड के क्रिस्टल में Fe तथा ऑक्सीजन का Fe.95O अनुपात पाया जाता है l ऐसे क्रिस्टल में विद्युत उदासीनता बनाए रखने के लिए कुछ Fe+2 आयन Fe+3 आयनों में बदल जाते हैं अर्थात अपने ऑक्सीकरण अंक में वृद्धि कर लेते हैं l

अशुद्धता दोष

जब किसी क्रिस्टल जालक में अशुद्धि के रूप में अन्य विपरीत आवेशित आयनिक यौगिक की अशुद्धि मिला दी जाए तो उत्पन्न त्रुटियां ही अशुद्धता त्रुटियां कहलाती है l NaCl व AgCl  के आयनिक क्रिस्टल में सूक्ष्म मात्रा में क्रमशः SrCl2 व CdCl2 की अशुद्धि मिलाने पर अशुद्धता दोष उत्पन्न हो जाते हैं l जब NaCl क्रिस्टल को गर्म कर उसने सूक्ष्म मात्रा में SrCl2मिलाते हैं तो क्रिस्टल जालक में Sr+2 आयन दो  Na+ आयनों को विस्थापित कर स्थान पाते हैं एक Na+  आयन की जगह Sr+2 ले लेता है लेकिन दूसरे Na+ आयन की जगह रिक्त रहती है इस प्रकार दोष उत्पन्न हो जाता है l

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1 Comment

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  • Ramesh , 14/12/2021 @ 9:27 पूर्वाह्न

    Explanation are very good.

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